Sunday, July 27, 2008

जब यादे लौटके आई तो थी भीगी भीगी सी ...


मैं तनहा बैठा था ,
जब यादें लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी....
सर्द हवा की थरथराहट
और नर्म रजाई की गर्माहट थी उसमे
सर्दी की सुबह ओश
में थी
भीगी भीगी सी....
मैं चाय के प्याले से
निकले वास्प से
एक धुंधली तस्वीर बना डाला
वही तेरी छोटी - छोटी
सी ऑंखें थी
भीगी भीगी सी.....
वही मासूम चेहरा
सुनसान रस्ते पे दूर तलक दिखा
पास आया तो लैब थर्रा उठे
कुछ कह पते की तब तक
यादें जब आई तो थी
भीगी भीगी सी.....
मैं केसे कह दू की
तुम मेरी तक़दीर हो
मगर
तुम्हारी पहली छुआन
मुलायम हांथों से मेरी
हथेलिओं पे जो कुरेदा तुमने
बस लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी.....
सूखे साख पे वो
आखिरी आधी हरी पत्ती
जिंदगी की उम्मीद कर बैठा
वक्त भी खामोश था
दुया जब वापस लाउत आई तो थी
भीगी भीगी सी ....
तेरे सांसो की खुशबु
से अब भी तर है जहाँ अपनी
मैं अब भी खामोश हूँ
धडकनों से बस बात करता हूँ
सोंचता हूँ
वो तेरा झूम के गले लगना
पहली दफा
जब लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी .....
वो बरसात की रिमझिम फुहार
एक आँचल में मुश्किल से
दोनों के छुपाना
तेरे गले पे एक बूंद का ठहर जाना
यादें लौटके आई तो थी
भीगी भीगी सी....

प्रकाश "अर्श "
२७/०७/2008

3 comments:

  1. रचना में बहुत गहरा एहसास नजर आता है।सुन्दर रचना है।

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  2. Mujhe last ke 2 columns bahut achhe lage...Fantastic..

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  3. वो बरसात का रिमझिम फुहार
    एक आँचल में मुश्किल से
    दोनों के छुपाना
    तेरे गले पे एक बूंद का ठहर जाना
    यादें लौटके आई तो थी
    भीगी भीगी सी....
    अर्श जी इस रचना ने तो मुझे भी कहीं दूर ले जाकर सोचने पर मजबूर कर दिया .कुछ यादों के झरोखों से कुछ नमी सी आने लगी है बहुत उम्दा और साहित्यिक लिखा है

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