Tuesday, November 10, 2009

नथ का मोती इस कदर चमका हुआ ...

एक बार फ़िर आप सभी के पास हाज़िर हूँ ...कुछ खास भूमिका बनाये बगैर आप सब के बीच ग़ज़ल को छोड़ रहा हूँ पुचकारिये दुलारिये और अगर प्यार और आर्शीवाद के काबिल है तो प्यार और आर्शीवाद भी जरुर दें खूब बिलेलान होकर .... मतले का मिसरा सानी में सहायक भूमिका में बहन कंचन जी का थोड़ा बहुत हाथ है, मगर जान और साँस फूंकी है परम आदरणीय गूरू देव श्री पंकज सुबीर जी ने ........ मगर सबसे पहले उस नायाब कहानी को जरुर पढ़ें ...साहित्य जगत में धूम मचाने वाली कहानी ....... महुआ घटवारिन
एक शाम जब दर्पण का मैंने अपहरण किया


बह' .... २१२२-२१२२-२१२


रिश्ते नातों का यही किस्सा हुआ
रेत का घर रेत पर बिखरा हुआ

जब तलक रोका था तो कतरा था ये
बह पड़ा तो देखिये दरिया हुआ

रूठ कर जाते हो पर बतला तो दो
आपको किस बात का गुस्सा हुआ

तिनके तिनके से बनाया घोसला
टूट कर बिखरा तो फिर तिनका हुआ

फन मेरा जो दिख रहा है आजकल
सब बुजुर्गों से है ये सीखा हुआ

देखकर सूरज भी शरमा जाएगा
नथ का मोती इस कदर चमका हुआ

कैसे कह दूँ अजनबी अब उसको मैं
अजनबी जो था वही अपना हुआ

मेरे चेहरे को पढा कब आपने
प्यार का ख़त उसपे था लिक्खा हुआ


प्रकाश'अर्श'
१०/११/२००९

Sunday, November 1, 2009

रिश्ते का मजमून

मुझे नहीं पता इस रचना ने कैसे जन्म लेली मेरे अंदर ,...और फ़िर मैंने इसे कागज पर उकेर दिया ,... आप सब के सामने हाजिर है दुआ करें और प्यार दें...


सर्दी की रात
चाँदनी छत पर पसरी हुई
हम दोनों
बालकनी से उसे छूते हुए
शब्द शून्य थे
समय की संकीर्णता
हलकी सी सिहरन
मगर
अजब सा पशोपेश
मेरा पलटना
फ़िर
उनका कहना
जी !!!! सुनते हो
सच
रिश्ते का मजमून था ?
ये



आपका 'अर्श'

Saturday, October 17, 2009

उंगलियाँ इसलिए खुबसूरत हुई ...


सबसे पहले तो आप सभी को दिवाली की समस्त शुभकामनाएं


गूरू जी के महफ़िल में तरही मुशायरा का आयोजन पुरे शीर्ष पर चल रहा है और खूब सारे लोगों ने जम के गज़लें कही हैं ... तरही का मिसरा है
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

इस तरही में मैंने भी कुछ कहने की जुर्रत की है जो आप सभी के सामने प्यार और आर्शीवाद के लिए रख रहा है तरही में में एक छुट ये थी की आप रहे / रहें किसी पे भी ग़ज़ल कह सकते थे . गूरू जी के मेहनत के आगे नतमस्तक हूँ उनकी तबियत ख़राब है और सारी दुआएं उनके लिए जल्दी ठीक हो जायें ....तो लीजिये हाज़िर है ये मुलायम सी ग़ज़ल ... आहिस्ते पढ़ें यही गुजारिश करूँगा ....



दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे ।
हम आजाबों से इनको बचाते रहे ॥

वो हमें इस तरह आजमाते रहे
शर्त हमसे लगा, हार जाते रहे

उंगलियाँ इसलिए खुबसूरत हुई
प्यार का नाम लिखते मिटाते रहे

मिल गया है उन्हें पैर में घाव लो
फूल कदमों तले जो दबाते रहे

हम बहुत दूर तक लो कदम से कदम
फासले दुश्मनी के मिटाते रहे

मखमली बिस्तरें देख घबरा गए
रोड पर जो दरी को बिछाते रहे

खिंच दूँ और चादर तो फट जायेगी
पेट पैरों में अब तक छुपाते रहे

अर्श'चिठ्ठी नही देता है डाकिया
टकटकी द्वार पर हम लगाते रहे

प्रकाश'अर्श'
१७/१०/०९

Sunday, October 11, 2009

प्रणाम गुरुवर आपके जन्मदिन पर आपको

सुबह जैसे ही उनीदीं सी आँख खुली उल्लास और हर्ष जैसे मेरे कमरे में पसरे हुए थे , खामोशी और बोरियत पता नही कहाँ दुबक गए थे ,सोचा तो था के रात में ही कॉल कर के जन्म दिन की बधाई दूँ फ़िर कहा ये सही नही होगा सुबह कॉल किया तो बीजी मिला कॉल इतने में कल खरीदी गयी पुस्तक को पलट रहा था नया ज्ञानोदय और उसमे गूरू जी की लिखी कहानी "प्रेम क्या होता है ?" प्रेम महा विशेषांक वाले अंक पे छपी दिखी और ये तो मेरे लिए जैसे चमत्कार की तरह निकला , आँखें चौंधिया गयी मेरी तो , और फ़िर तुंरत गूरू जी को कॉल किया वो हमेशा की तरह समय पे अपने दफ्तर में मिले मैं आश्चर्य चकित के आज के दिन यहाँ क्या कर रहे हैं !? फ़िर बातें हुई और उनको जन्म की बधाई दी मेरे साहित्य सृजन में मेरी रूचि और मेरी साहित्य का संरक्षण , मुझे सही मार्गदर्शन , ग़ज़ल की बरिकिओं के बारे में बताना इन सभी चीजो का श्रेय आदरणीय गूरू जी को ही जाता है साहित्य के बारे में उनकी लगनशीलता और साहित्य की सेवा जिस तरह से वो कर रहे है उसके विषय में यही कहूँगा के साहित्य की देवी को कोई सच्चा उपासक मिल गया है जो श्रवण की तरह अपने कंधे पे लेकर भ्रमण कर रहा है और सभी को शिक्षा का ज्ञान दे रहा है
वो हमेशा मुझे कहते हैं के ग़ज़ल ऐसा कहो के तुम्हारी ग़ज़ल शे'र ठेले वालों और पान की गुमटी वालों तक पहुंचे तभी सच्ची और अच्छी ग़ज़ल कही जाती है , शे'र ऐसा कहो के लोगों के जुबान पर चढ़ के बोले , ये सारी बातें यह साबित करती है के वो कितने बारीक से लोगों की भावनावो और साहित्य की बात को समझते हैं... इनके वीर रस के कवितावों का क्या कहना महारथ हाशिल है इन को .....
इनके प्रकृति प्रेम को आप सहजता से लें और देखें की ये कितने घुल मिल कर बातें करते हैं इन से भी ... गूरू जी के बारे में कुछ बातें खास हैं वो ये के उनको तरह तरह ब्यंजन चखने का बहुत ही शौक है एक बारी जब इनसे मिला था तो इसकी जानकारी लगी अमूमन उनको देख कर ऐसा बिल्कुल नही लगता के वो खाने के इतने शुं हैं... यहाँ तक के वो गोलगप्पे के ज्यादा शौकीन हैं ....
बेहद सरल स्वभाव और मृदुभाषी इस इंसान के लिए क्या कहूँ कुछ समझ नही आ रहा है थोड़े संकोची हैं मगर बेहद संवेदनशील इंसान हैं.... ऊपर वाले से यही विनती करूँगा के इनको दुनिया की वो तमाम खुशियाँ बख्शे जिसकी ये इक्षा रखते हैं ,साहित्य के प्रति इनकी लगन और कर्म हमेशा ही चरम पे रहे ,॥
आज इस विशेष दिवस पर उनके हमेशा ही मंगल के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना करता हूँ ॥ साहित्य रुपी आसमान में ये एक ध्रुव तारे की तरह विराजमान हैं , इनको सदर चरण स्पर्श ....



आपका
अर्श

Thursday, October 1, 2009

तन्हाई तो होती है तन्हाई में ...

सितम्बर का महिना उफ्फ्फ भयावह ... काफी दिनों से गूरू जी के आने का इंतज़ार कर रहा था बेशब्री से मगर ऊपर वाले ने मिलना नही लिख रखा था , अजीबो गरीब हादसे एक पे एक मन को झकझोर के रख दिया था ... खैर ज़िंदगी है और ये सब तो वाजिब ही है ...उधर गूरू भाई गौतम की ख़बर मिली , अल्लाह मियाँ मेरे भईयों को जल्दी दुरुस्तगी बख्शे , अरसे बाद एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है , गूरू का आर्शीवाद मिला है और एक हलकी फुलकी ग़ज़ल आप सभी के सामने लेकर हाज़िर हूँ ताकि लिखने का क्रम ना टूटे... आप सभी के प्यार और आर्शीवाद के लिए ...




दर्द मेरा बढ़ जाता है पुरवाई में ।
उम्र कटी है जख्मों की भरपाई में

बरखा के बादल को देखा जब घिरते
कोयल कूकि कुहुक कुहुक अमराई में

डूब के अब तक मैं भी पार उतर जाता
ग़ालिब कहते डूब इस गहराई में

तेवर गुस्सा रहमत लज्जा साजन का
क्या क्या है और क्या बोलूं हरजाई में

मैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
तन्हाई तो होती है तन्हाई में

मेरी अर्थी उसकी डोली संग उठी
तब तो दर्द भरा है यूँ शहनाई में

अर्श को देखो नाम कमा के बैठा है
नाम बहुत होता है क्या रुसवाई में ?


प्रकाश'अर्श'
०१/१०/२००९

Monday, September 7, 2009

दिल अगर फूल सा नहीं होता...

कुछ दिन पहले जनाब सतपाल जी के बज्म में एक तरही का आयोजन किया गया था ... उसमे इस अदने ने भी कुछ एक शे' कहने की कोशिश की थी चूँकि मैं अभी सिखने की प्रक्रिया में हूँ तो गलतियाँ मुआफ करने की गुजारिश आप सभी से करूँगा ... मिसरा--तरह था दिल अगर फूल सा नहीं होता... बह'रे खफ़िफ़ की मुजाहिफ़ शक्ल है ...


बात जब ये चली हीं है तो अभी कुछ दिन पहले बहन कंचन से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ फ़िर खूब जमा रंग... एक शे' हलाकि उनके कहने पे ही जन्म लिया था ,इस शे' से कोई तात्पर्य नही है इसे उनके साथ नही जोड़ा जाना चाहिए ... बस ये है के इसके जन्म लेने में उनका हाथ है ....


मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये पे रक्खा है
कम-से-कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...


अब बात करते है मिसरा--तरह की ...तो पढ़ें और आनंद लें...

२२ , , या ,


रंग--बू पर फ़िदा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कह के जो तू गया नहीं होता
फ़िर तेरा आसरा नहीं होता

आप
आकर गए क्यों महफ़िल से
इस तरह हक़ अदा नहीं होता

सब से अक्सर यही मैं कहता हूँ
बा-वफ़ा बे-वफ़ा नहीं होता

कौन कहता है कुछ नहीं मिलता
इश्क में क्या छुपा नहीं होता

दिल की कह तो मैं देता उनसे मगर
क्या करूँ हौसला नहीं होता




प्रकाश 'अर्श '

Monday, August 24, 2009

तेरे शिकवे बहुत नाजुक हैं..

बजाय इसके मैं कुछ कहूँ...हद ये है के कुछ कह नहीं सकता ...एक छोटी सी रचना है मन में बहुत उधेड़बुन के खिलाफत के बाद आप सभी के पास रख रहा हूँ जो शायद पसंद ना भी आए ... मगर इससे पहले एक शे' कहूँगा जो श्रधेय मुफलिस जी के लिए बरबस ही जबान पे आगया था .... और खास बात ये है के उनको भी यह खूब भाया


तेरे शिकवे बहुत नाजुक हैं ,इन्हे महफूज़ रखता हूँ...
मुद्दतों बाद ये मुझको बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ...



एक छोटी सी रचना को शायद पेश नही करना चाहता था मगर क्या करूँ कर दिया....हो सकता है आप सभी के साथ भी कभी कभी ऐसा होता हो... क्यूँ की मैं भी तो इंसान ही हूँ ना...


कभी कभी ये आँखें
ख़ुद-बा-ख़ुद
डबडबा जाती हैं...
जब पूछता हूँ मैं
आंसू से
वो कहते हैं, बेबाकी से
तुम्हारे
गर हम होते
तो
कभी नहीं बहते
बस फ़िर मैं उन्हें
एक टक देखता हूँ
और
बहने देता हूँ



प्रकाश'अर्श'
२४/०८/२००९

Thursday, August 13, 2009

मां के हाथों की रोटियों की महक ...

लंबे समय के बाद एक छोटी बह' की ग़ज़ल कहने की कोशिश की है जिसे आर्शीवाद परम आदरणीय गूरू देव ने दिया है ... आप सभी के सामने इसे रख रहा हूँ प्यार और आर्शीवाद के लिए...


बह' .... २१२२ १२१२ ११२


मुस्कुराकर वो जब बुलाए मुझे ,
हादसे पास नज़र आए मुझे ॥


मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे

लोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे


मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥


उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे

तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥


खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे


प्रकाश"अर्श"
१३/०८/२००९

Thursday, July 23, 2009

कुछ नहीं है सिवाए यादों के ...

एक तो गर्म मौसम और ऊपर से ये बेवजह की मसरूफियत,बहोत दिनों तक आप सभी से दूर रक्खाइस देरी के लिए आप सभी से मुआफी चाहता हूँ ...पर एक बात है गूरू जी के छड़ी में बहोत आनंद है ... गूरू जी के आर्शीवाद से ये ग़ज़ल आप सभी के सामने पेश करने लायक बन पड़ी ... तो हाज़िर हूँ मैं इस ग़ज़ल को लेकर आप सभी का प्यार और आर्शीवाद के लिए ... मगर पहले ये तस्वीर आदरणीय श्री मुफलिस जी और बड़े भाई श्री नु जी के साथ ... इसे मेरा सौभाग्य ही समझें
आदरणीय श्री मुफलिस जी, मैं , और बड़े भाई मनु जी


बह
'र ..... २१२२ १२१२ २२

दास्तां अपनी क्या कही जाये
बात उसकी ही बस सुनी जाये

कर्ज पर ले तो आए हैं चीजें
किश्त अब किस तरह भरी जाये

जब भी रुखसत करूँ मैं दुनिया से
मेरे संग याद बस तेरी जाये

मैं खुशामद तो कर नही सकता
पर मेरी बात भी सुनी जाये

कुछ नहीं है सिवाए यादों के
आज इनसे ही बात की जाये

ज़िंदगी की फटी हुई चादर
आज फुरसत में बैठ सी जाये॥

'अर्श' ये इश्क भी अजब शै : है
आँख से नींद है उड़ी जाये ॥



और आख़िर में चलते चलते आप सभी को एक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहता हूँ ... ग़ज़ल गायकी की दुनिया में मैं अपना गूरू उस्ताद गुलाम अली साहब को अपना गूरू मानता हूँ , चूँकि उनको बचपन से ही सुनता रहा हूँ और सुनके ही गज़लें गायी है तो चलिए सुनते है उनकी एक ग़ज़ल के कुछ शे' मेरी आवाज़ में अगर कोई गलती हो गई हो तो मुआफी चाहूँगा आप सभी से .....





प्रकाश'अर्श'
२३/०७/२००९