Monday, March 30, 2009

मेरा घर खुश्बुओं का घर होगा ...

परम आदरणीय और मेरे गूरू वर श्री पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल आप सभी के प्यार और आशीर्वाद के लिए प्रतीक्षारत ....


हाय वो वक्त किस कदर होगा
मेरा महबूब मेरे घर होगा ।

दिल हमारा है प्रेम का मन्दिर,
हम पे नफ़रत का ना असर होगा ।

घर बनाते है पत्थरों के सब
मेरा घर खुश्बुओं का घर होगा ।

उनसे जब सामना होगा मेरा
दिल मेरा आसमान पर होगा ।

दिल को छलनी किया है नज़रों ने
इस पे कब मरहमे नज़र होगा ।

आज फ़िर ज़िन्दगी बुलाती है
आज फ़िर से शुरू सफर होगा ।

उनसे नज़रें मिलाये बैठा है
अर्श को मौत का ना डर होगा ॥


बहर .... २१२२ १२१२ २२
प्रकाश'अर्श'
३०/०३/२००९

Sunday, March 22, 2009

तू कातिल है मगर मुझ सा लगे है ...

परम आदरणीय श्री प्राण शर्मा जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल आप सभी के प्यार और आशीर्वाद के लिए....


तेरा चेहरा मुझे अच्छा लगे है ।
तू कातिल है मगर मुझ सा लगे है ॥

मेरी किस्मत कहाँ मुझको मिले तू
तुझे पा लू मुझे किस्सा लगे है ॥

तुम्हारी बात में ऐसा असर है
ये मिट के भी मुझे पुख्ता लगे है ॥

मेरी किस्मत में चलना ही है यारो
मेरी मंजिल मुझे रस्ता लगे है ॥

तुम उससे पूछते हो दोस्तो क्या
कि वो हर बात में बच्चा लगे है ॥

भुला पाउँगा इसको'अर्श' कैसे
तुम्हारा प्यार नित सच्चा लगे है ॥

बहर १२२२ १२२२ १२२
प्रकाश'अर्श'
२२/०३/२००९

Sunday, March 15, 2009

साहित्य ,ज्ञानपीठ और गुरु देव....

कुछ बात है के हस्ती मिटती नही हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरें जहाँ हमारा

शनिवार की सुबह ऐसे तो 11 बजे से पहले मेरी आँख नही खुलती कभी मगर आज का ये दिवस जैसे मेरे पुरे जीवन के लिए नही भूल सकने और मिटने वाला है । हमेशा से ही ये सोचता था के हर दिन ऐसा हो के हमेशा के लिए याद रह जाए मगर ये मूलतः सम्भव नही है ,हर एक के लिए उसके जीवन में ।
मुझे इस बात का जारा सा भी इल्म नही था के साहित्य ,हिन्दी भवन ,और मेरे गुरु जी एक साथ ही मुझे मिलेंगे। जैसे ही मैं हिन्दी भवन पहुँचा गुरु जी पहले ही पहुँच चुके थे समय पे जैसे ही मैंने उनका चेहरा पहली दफा देखा धन्यभाग मेंरे कितनी सहजता से उन्होंने मुझे गले लगने पे बिवश किया मेरे चरण छूने पे ,पता नही ये कैसी तस्कीन थी उनसे गले लग के एक अलग सी शान्ति और सुकून मिला जो पहले कभी भी एहसास नही हुआ

जब गुरु जी को नवलेखन के लिए सभागार के सबसे अगली पंक्ति में बैठने को
कहा गया तो मैं ह्रदय से प्रफुल्लित और भाव बिभोर हो उठा इस बात का सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है के भारत जैसे विशाल देश में एक छोटे से कसबे सीहोर का वो शांत मृदुल और विनम्र स्वाभाव का ब्यक्ति साहित्य जगत में आज सबसे पहली पंक्ति में बैठा है । शायद इस बात का अंदेशा उन्हें भी नही था ।जो मंच पे या खचाखच भरे सभागार में बैठे हजारो लोग थे ।

मंच पे साहित्य जगत के बड़े-बड़े हस्ताक्षातर श्री कुंवर नारायण ,अजित कुमार, अशोक वाजपयी, श्री कैलाश वाजपयी,और सुश्री रिता शुक्रल जी आसीन थे । वो गर्व महसूस कर रहे होंगे के उनके सामने ये सरल स्वाभाव का इंसान जो बैठा है उतराधिकारी के रूप में है, उसके हाथ में हिन्दी जगत का भविष्य बहोत उज्जवल है और सुरक्षित भी ।

ईस्ट इंडिया कंपनी १५ छोटी छोटी कहानियो का संकलन है । जिसमे सारे के सारे मोतिओं के समान कहानियाँ है को गुरु जी ने पिरोया है हमारे लिए ।
साहित्य जगत में अमिट दखल रखने वाली सुश्री रिता शुक्ला जी औरज्ञानपीठ के निदेशक श्री रविन्द्र कालिया जी ने पुस्तक का विमोचन किया ऐसा लग रहा था के जैसे माँ
सरस्वती ख़ुद धारा पे आई है और उतराधिकारी को उसका राज तिलक कर रही है ,मुख्या मंत्री साहिबा थोडी देर थी तो एक बात सबको ध्यान रहे समय किसी का इंतज़ार नही करता ,हालाकिं वो आई मगर अफ़सोस जाहिर करने के सिवा उनके पास कुछ भी नही था ।आप सभी तो राजनीति, मसरूफियत देर से आना ये सारे एक ही घडे के पानी पिने के समान है समझ सकते है

पुस्तक विमोचन के बाद हम श्री कुंवर नारायण जी मिले और उनका आशीर्वाद लिया । साहित्य जगत और साहित्य से मेरी मुलाक़ात ये मेरी ज़िन्दगी में पहली दफा है रही थी, मैं उत्सुक था,सभी से मिलने केलिए ख़ुद गुरु वर मुझे नए और पुराने लेखको से मेरा परिचय करा रहे थे "अर्श" के रूप में ।

वहां से हम केन्नोट पैलेस में लंच लेने के लिए वही पे गुरु जी से विस्तार से बात होती रही डाईनिंग टेबल पे । फ़िर होटल गए वहां खूब गप्पे मारे , गुरु जी से सीखता रहा उनके आशीर्वचन सुनता रहा लेख और लेखनी के बा
रे में ।
शाम को थोड़ा घुमाने गए । घुमाते घूमते एक होटल में अल्पाहार लेने गए ,एक और बात है गुरु जी के सेहत से आप ये बात बिल्कुल नही कह सकते के ये इंसान खाने का खूब शौकीन है मगर सिर्फ़ शौक रखते है खाते नही

लौटने के बात देर रात तक होटल में बात चलती रही उनके साथ सोनू जी भी आए थे उनसे से भी मुलाक़ात हुई
फ़िर रात्रि १२ बजे मैं वापिस आगया ताकि सुबह वाली ट्रेन में जानी है इन दोनों लोगों को तो थोड़ा आराम का भी मौका मिले कल से है इन्हे सब तो नसीब था मगर आराम नही कर पा रहे थे मेरे मिलने से और कहूँ तो उत्सुकता से मिलने को लेकर॥
गुरु जी की पहली पुस्तक को सबसे पहले खरीदने का गौरव भी मुझे प्राप्त हुआ उनके हस्ताक्षर सहित और एक और लेखक श्री रविकांत जी की पुस्तक यात्रा को भी सबसे पहले मैंने ही ख़रीदा ॥
पुस्तक प्राप्ति का पता है १८, इन्स्तितुशनल एरिया ,लोदी रोड नई दिल्ली -११०००३
मूल्य मात्र रु .१३०/-
बस एक शे' है के ...
वो मिले बिछड़ भी गए और चुप हो रहे
जैसे मुख्तशर सी बात में सदियाँ गुजर गयी

प्रकाश'अर्श'
१५/०३/२००९

Wednesday, March 11, 2009

शाम को डूबते हुए सूरज...

होली के पवन पर्व पे आप सभी को ढेरो बधाई... बस एक दिली-खाईश थी के आप सभी के सामने एक नज़्म पेशकरू... आप सभी का प्यार और आशीर्वाद चाहूँगा...

सबसे पहले बादशाह शाईर जनाब बहादुरशाह जफ़र का ये शे'

हम ही उनको बाम पे लाये,और हम ही महरूम रहे ॥
पर्दा हमारे नाम से उठा ,आँख लडाई लोगों ने...


शाम को
डूबते हुए सूरज की
नर्म और मुलायम किरणे
जब धीरे से
छूती है तो लगता है
तुम्हारी रेशमी जुल्फें
अभी -अभी
मेरे चेहरे पे सरकती हुई
गालों पे एक-दुसरे के साथ खेल रही है
तुम्हारी खुशबू जहन में
उतरते हुए कहती है
'भर लो मुझे'
और इस तरह के हवाओं से
खुशबू ख़त्म हो जाए
ये सोच के ही इक जुम्बिश सी होती है
तुम लौट आवो
ये तस्कीन वो जौक
स्वर्ग है मेरे लिए



प्रकाश'अर्श'
११/०३/२००९
जुम्बिश=वईबेरेशन ,
तस्कीन=सुकून,शान्ति
जौक=स्वाद...

Thursday, March 5, 2009

आंखें दो काली ऐसे थीं मशहूर शहर में ...

परम श्रधेय गुरु देव श्री पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल ,आप सबके सामने प्रस्तुत है ,आप सभीका प्यार और आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ.... आप सभी को होली की अनंत -असीम शुभकामनाएं सहित ....

बहर ... २२१ २१२१ १२२१ २१२


भरती रही वो सिसकियां देखा कोई न था ।
किस चाल से चला के ज्‍युं आया कोई न था ॥

किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये ।
कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था ॥

आंखें दो काली ऐसे थीं मशहूर शहर में ।
दोनों जहां में जैसे के दूजा कोर्इ न था ॥

देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही ।
उस पेड़ में पलाश के पत्‍ता कोई न था ॥

मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर ।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था ॥


प्रकाश'अर्श'
०५/०३/२००८