Thursday, June 18, 2009

इश्क मोहब्बत आवारापन...



इस महीने इतने हादसे हुए कवि जगत पे जिससे मन आहत है मेरे और मेरे परम आदरणीय गूरू जी के तरफ़ से इस अपुरनिया क्षति को तथा उन सभी वरिष्ठ और सम्मानीय दिवंगत कविओं को नम आंखों से श्रधांजलि ॥ आज मेरे इस ब्लॉग का भी एक वर्ष पूरा हो गया है ये मुमकिन सिर्फ़ आप सज्जनों के प्यार, स्नेह और आर्शीवाद से हुआ है , वरना मैं अदना ये सफर कैसे तय कर सकता था, जिसमे मेरे गूरू जी ने मुझे उंगली पकड़ कर चलना सिखाया ॥ ये गूरू शिष्य परम्परा ता-उम्र यूँ ही चलती रहेगी सीखने सिखाने की यही ऊपर वाले से दुआ करूँगा के गूरू जी का आर्शीवाद और आप सभी का प्यार बना रहे ... एक छोटी बह'र की बे-रदीफ़ ग़ज़ल आप सभी के सामने है ,प्यारऔर आर्शीवाद के इंतज़ार में .... आप सभी का "अर्श"




इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन ॥

मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥

शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
उसने देखा होगा दर्पण ॥

परदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन ॥

चन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
पावन पावन पावन पावन ॥

बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन ॥

कौन कहे बिगडे संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन ॥

दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥



प्रकाश "अर्श"
१८/०६/२००९