बजाय इसके मैं कुछ कहूँ...हद ये है के कुछ कह नहीं सकता ...एक छोटी सी रचना है मन में बहुत उधेड़बुन के खिलाफत के बाद आप सभी के पास रख रहा हूँ जो शायद पसंद ना भी आए ... मगर इससे पहले एक शे'र कहूँगा जो श्रधेय मुफलिस जी के लिए बरबस ही जबान पे आगया था .... और खास बात ये है के उनको भी यह खूब भाया॥
तेरे शिकवे बहुत नाजुक हैं ,इन्हे महफूज़ रखता हूँ...
मुद्दतों बाद ये मुझको बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ...
मुद्दतों बाद ये मुझको बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ...
एक छोटी सी रचना को शायद पेश नही करना चाहता था मगर क्या करूँ कर दिया....हो सकता है आप सभी के साथ भी कभी कभी ऐसा होता हो... क्यूँ की मैं भी तो इंसान ही हूँ ना...
कभी कभी ये आँखें
ख़ुद-बा-ख़ुद
डबडबा जाती हैं...
जब पूछता हूँ मैं
आंसू से
वो कहते हैं, बेबाकी से
तुम्हारे
गर हम होते
तो
कभी नहीं बहते
बस फ़िर मैं उन्हें
एक टक देखता हूँ
और
बहने देता हूँ ॥
प्रकाश'अर्श'
२४/०८/२००९
ख़ुद-बा-ख़ुद
डबडबा जाती हैं...
जब पूछता हूँ मैं
आंसू से
वो कहते हैं, बेबाकी से
तुम्हारे
गर हम होते
तो
कभी नहीं बहते
बस फ़िर मैं उन्हें
एक टक देखता हूँ
और
बहने देता हूँ ॥
प्रकाश'अर्श'
२४/०८/२००९