Monday, August 24, 2009

तेरे शिकवे बहुत नाजुक हैं..

बजाय इसके मैं कुछ कहूँ...हद ये है के कुछ कह नहीं सकता ...एक छोटी सी रचना है मन में बहुत उधेड़बुन के खिलाफत के बाद आप सभी के पास रख रहा हूँ जो शायद पसंद ना भी आए ... मगर इससे पहले एक शे' कहूँगा जो श्रधेय मुफलिस जी के लिए बरबस ही जबान पे आगया था .... और खास बात ये है के उनको भी यह खूब भाया


तेरे शिकवे बहुत नाजुक हैं ,इन्हे महफूज़ रखता हूँ...
मुद्दतों बाद ये मुझको बड़ी मुश्किल से मिलते हैं ...



एक छोटी सी रचना को शायद पेश नही करना चाहता था मगर क्या करूँ कर दिया....हो सकता है आप सभी के साथ भी कभी कभी ऐसा होता हो... क्यूँ की मैं भी तो इंसान ही हूँ ना...


कभी कभी ये आँखें
ख़ुद-बा-ख़ुद
डबडबा जाती हैं...
जब पूछता हूँ मैं
आंसू से
वो कहते हैं, बेबाकी से
तुम्हारे
गर हम होते
तो
कभी नहीं बहते
बस फ़िर मैं उन्हें
एक टक देखता हूँ
और
बहने देता हूँ



प्रकाश'अर्श'
२४/०८/२००९

Thursday, August 13, 2009

मां के हाथों की रोटियों की महक ...

लंबे समय के बाद एक छोटी बह' की ग़ज़ल कहने की कोशिश की है जिसे आर्शीवाद परम आदरणीय गूरू देव ने दिया है ... आप सभी के सामने इसे रख रहा हूँ प्यार और आर्शीवाद के लिए...


बह' .... २१२२ १२१२ ११२


मुस्कुराकर वो जब बुलाए मुझे ,
हादसे पास नज़र आए मुझे ॥


मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे

लोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे


मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥


उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे

तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥


खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे


प्रकाश"अर्श"
१३/०८/२००९