Tuesday, June 29, 2010

डा. कुमार विश्वास,सिद्धार्थ नगर और कवि सम्मलेन



नुसरत दीदी , गुरु जी , मोनिका दीदी , गौतम भाई और वीनस
तमाम ब्यास्तताओं और कठिनाइयों के बावजूद जब डा. कुमार विश्वास गौतम बुद्ध की पावन धरती पर पहुंचे तो सारा सिद्धार्थ नगर झूम उठा !मैं ये बात कर रहा हूँ २६ जून की उस ऐतिहासिक शाम के बारे में , सिद्धार्थ नगर में एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था , संस्था का नाम है नवोन्मेष !एक ऐसी संस्था जिसने नई पीढ़ी को साहित्य के दर्शन कराने का बीड़ा उठाया है , जीतनी इस संस्था की तारीफ की जाये कम है ! सारे ही नौजवान जिस लगन से इस आयोजन को सफल बनाने में जुटे थे लग रहा था हिंदी को अब को खतरा नहीं ! विजित सिंह जो मुश्किल से २१ या २२ साल का एक लड़का है , कहीं से भी कम आंकना इस नौजवान के लिए छोटी बात है
विजित के साथ मैं
इस कवि सम्मलेन को सफल बनाने में इस नौजवान ने जतनी मेहनत की वो काबिलेतारीफ है ! इस हसीन शाम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मुझे भी मिला !
दो दिवसीय इस आयोजन में अंतिम दिन कवि सम्मलेन की तिथि तय थी, दिल्ली से डा. कुमार विश्वास , भोपाल से नुसरत दीदी , रमेश यादव जी ,लखनऊ से सर्वत जमाल जी , सीहोर से गुरु जी , मोनिका दीदी , और डा. आज़म साहब, सहरसा से गौतम भाई, अलाहाबाद से वीनस भी आमंत्रित थे , इस तरबतर कर देने वाली गर्मी में इतनी दूर पहुंचना ही अपने आप में साहस की बात है,मैं भी खुश था इन सभी लोगों से मिलने के लिए!अगर इन सभी को एक जगह लाने का श्रेय दिया जाये तो वो बहन कंचन को जाता है और एक मंच पर लाने का काम बखूबी गुरु जी ने किया !
मंच पर आसीन सभी
गुरु जी द्वारा मंच संचालन
करिश्माई डा. विश्वास
इस कवि सम्मलेन की सफलता के लिए मैं आश्वस्त था क्यूँ की कुमार विश्वास जिस कवि सम्मलेन में शरीक होने को हों वो खुद उसकी जमानत ही है !मैं भी पहली बार ही इस करिश्माई इंसान से मिल रहा था रोमांचित भी था के मैं जहां रहता हूँ दिल्ली में वहां से सिर्फ चंद किलोमीटर पर ही कुमार साब रहते हैं मगर मिलना मुनासिब ना हो सका कभी !

आज नौजवान की दिल की धड़कन बने इस करिश्माई इंसान के बारे में यही कहूँगा के सच में वो धडकनों में बसने का पूरा हक़ रखते हैं ! आज उनकी शोहरत से सभी रश्क करते हैं मगर उसके पीछे की उनके कठिन संघर्ष को कोई नहीं जानता , कितनी मेहनत की है उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए शाम को रेस्ट हाउस में बैठ कर गप्पे मरने के दौरान उन्होंने सारी बातें मुझसे और गुरु जी से की सच कहूँ तो उनके लिए करिश्माई इंसान ही कहूँगा उन्हें !
ये मेरी खुशकिस्मती ही है के मैं उनसे और गुरु जी से साथ में मुखातिब था !शायद किसी पुण्य कर्म किये होंगे कभी! गौतम भाई , कंचन बहन , वीनस और मेरा किसी भी तरह का प्रथम कवि सम्मलेन था मंचीय जो शायद ज़िंदगी भर ना भूलपाने वाली शाम थी वो ! हम चारो धन्य ही हैं के अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति में गुरु जी और डा. विश्वास के सामने थे !
सभी ने अपनी प्रस्तुति से सिद्धार्थ नगर के लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया , दर्शकों की भी तारीफ़ करनी होगी जिस हिसाब से वो साथ दे रहे थे वो काबिले गौर बात थी! जो हज़ारों की संख्या में आकर और अपनी जिस शालीनता से सुन रहे थे दर्शा रहे थे ,सच कहूँ सिद्धार्थ नगर के लोगों को सलाम करता हूँ !
गुरु जी की कविता दर्द बेचता हूँ मैं , रमेश यादव जी की कविता ये पिला बासन्तीय चाँद , नुसरत दीदी की ग़ज़ल टूट जाऊं बिखर जाऊं क्या करूँ, मोनिका दीदी की सरस्वती वन्दना और , इससे बेहतर है के मुलाक़ात ना हो , गौतम भाई की उड़स ली चाभी गुछियों वाली , बहन जी की ज़मीं अपनी जगह आसमान अपनी जगह , वीनस की ग़ज़ल ना मुकदमा ना कचहरी , ने लोगों को झूमा कर रख दिया ,...
मगर जब डा. विश्वास की बारी आयी तो लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया अपना मज़ीद कलाम कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है जैसे ही शुरू किया लोग की धड़कने जैसे थम सी गयी , जब तक गाते रहे लोग खड़े होकर तालियों से स्वागत करते रहे! सही तौर पर कही जाए तो डा. विश्वास जो झंडा कविता के लेकर आगे आगे चल रहे हैं सच में कविता सुरक्षित है इस देश में ! अपने बिना रुके दो घंटे की कविता पाठ में दर्शकों को बांधे रखना डा. विश्वास के ही बूते की बात है! इस पुरे दौर में शुद्ध रूप से कविता पाठ के दौरान डा . साब ने चकित कर दिया पूरे सिद्धार्थ नगर को और कविता के जिस रस को सामने रखा सबके सभी आनंद विभोर हो गए !
आयोजन की समाप्ति के बाद नए लड़के और लडकियां औटोग्राफ के लिए जैसे टूट पडे उनपर !रात्री भोजन के पश्चात हम सभी घर के सामने बैठे रहे सुबह तक उस दौरान भी डा. साब ने अपनी तज़रबा को हम सभी के साथ बांटा ! सच में यह इंसान नहीं चमत्कार ही है इस देश के लिए और कविता के लिए!


अर्श

Friday, June 25, 2010

मेरे महबूब से वो जल रहे हैं ...

हालाँकि गर्मी से निजात अभी पूरी तरह से नहीं मिल रही , मगर कुछ बुन्दा बांदी होने लगी है !और अब ग़ज़ल जो धडकनों में दफ्न है, मचलने को आतूर होने लगी है , इसी सिलसिले में आज एक मुक्तक पेश कर रहा हूँ , अगर कभी ग़ज़ल मुकम्मिल बन गयी तो जरुर आप सभी के सामने रखूँगा ....

सितारे हाँथ अपने मल रहे हैं !
मेरे महबूब से वो जल रहे है !!

सियासत करने वालों को भी देखा
यक़ीनन पहले वो अजमल रहे हैं !!

अर्श

Monday, June 7, 2010

शुक्रगुज़ार हूँ आप सभी का ...


आज ब्लॉग की तीसरी सालगिरह है और सुबह से इसी उहापोह में हूँ के क्या कहूँ और क्या लिखूं, खैर कुछ समझ तो अभी तक नहीं आया इसलिए बस ये केक आप सभी के हवाले किये जा रहा हूँ ! और इस वादे के साथ के बहुत जल्द ही एक खुबसूरत ग़ज़ल के साथ हाज़िर होने वाला हूँ ! तीसरा साल मनाने की स्थिति में तभी हूँ जहां आप सभी के प्यार और आशीर्वाद के बगैर पहुंचना नामुमकिन ही है ! आप सभी ने जिस तरह से मेरी हौसला आफजाई की है और मुझे प्रेरित किया है बेहतर से बेहतर लिखने के लिए उसका मैं दिल से शुक्र गुज़ार हूँ... और तमाम उम्र ऋणी रहूँगा ! ये केक मेरी गूरू कुल की सबसे लाडली बहन के तरफ से आया है सो इसका भरपूर स्वाद आप सभी भी चखें....
इस ब्लॉग जगत ने बहुत कुछ दिया है मुझे अगर उन सभी चीजों के बारे में लिखने बैठ जाऊं तो दो तिन पोस्ट ऐसे ही लिख डालूँ ...पूजनीय गुरू देव ,आदरणीय द्विजेन्द्र द्विज जी ,श्रधेय प्राण शर्मा जी , श्रधेय महावीर जी ,श्रधेय सर्वत जमाल जी ,श्रधेय मुफलिस जी , मेरे गूरू भाई बहन ,माँ निर्मला , मनु भाई ,दर्पण,सीमा जी ,डाक्टर अनुराग ,और वो तमाम सज्जन और गुणीजन जिन्होंने मुझे आगे बढ़ते रहने में साथ दिया, को दिल से फ़िर से आभार ब्यक्त करता हूँ !क्षमा चाहूँगा जिन साथियों का नाम नहीं लिख पाया ,उम्मीद है वो मेरी बात और भावनावों को समझेंगे !

गुरुवर का तो आभार भी ब्यक्त नहीं कर सकता क्यूंकि आज जो भी हूँ वो उनका दिया हुआ है !

उम्मीद करता हूँ के आप सभी अपना स्नेह और प्यार ऐसे ही मेरे ऊपर बरसते रहेंगे आगे भी !
आप सभी का
अर्श